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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

प्राप्त का आदर करना सीखिये

संसार में दूरी में आकर्षण है। जो वस्तु समीप है, खुद हम जिसके मालिक है, जिसपर हमारा स्वत्व है, हम उसके प्रति न दिलचस्पी लेते हैं, न उसकी सुन्दरता, महत्त्व, लाभ और उपयोगिता को ही समझते है। मानव-जगत्की अतृप्तिका यह एक बड़ा कारण है।

जो वस्तु हमारे पास रहती है, हम उससे इतना अधिक परिचित हो जाते हैं कि उसकी उपयोगिता हमारे लिये कुछ अर्थ नहीं रखती। घरमें जो व्यक्ति हैं उनसे हमारा काम आसानी से चलता है। हमारी वृद्धा माँ वृद्ध पिता, बड़े भाई-बहिन इत्यादि के निकट निरन्तर रहते रहने के कारण हम उनका महत्त्व दृष्टिगत नहीं करते। पुराने कुटुम्बों में जो नयी रोशनी के युवक-युवती हैं, वे वृद्ध पितामहों का आदर-सत्कार, सेवा इत्यादि करनेमें अपनी प्रतिष्ठा की हानि समझते हैं। इसका कारण यही है कि हम प्राप्त का अनादर करते हैं।

महाजन रुपया उधार देता है, उसकी दृष्टि में मूलधन का इतना महत्त्व नहीं है जितना कि सूदका है। उसके पास रुपयेकी कमी नहीं है। यदि वह चाहे तो उसी रुपयेका आदर कर (अर्थात् सदुपयोग कर) जीवनपर्यन्त सुखी रह सकता है, किंतु उसका लोभ उसके मार्गमें बाधा उपस्थित करता है। वह सूदको वसूल करनेके लिये जमीन-आसमान सिरपर उठा लेता है, मुकदमेबाजी में फँसता है; वर्षों अदालतमें खड़ा रहकर समय व्यर्थ नष्ट करता है। यदि मुकदमा सफल रहा तो उसे कुर्की द्वारा मूलधन सूदसहित प्राप्त होता है। अनेक बार कर्ज लेनेवालोंका दिवाला निकल जाता है और सूदके प्रलोभनमें मूलधन भी जाता रहता है। यदि वह व्यक्ति जो प्राप्त है, उसीका समुचित आदर करता तो क्यों अपना मूलधन भी व्यर्थ गँवाता?

लोग स्वयं यह नहीं देखते कि वास्तवमें उन्हें कितनी सौभाग्यशील प्रसन्नता प्रदान करनेवाली सुख-समृद्धि तथा मोदमयी वस्तुएँ प्राप्त हैं। यदि विवेकपूर्ण नेत्रोंसे देखा जाय, तो आपको विदित होगा कि आपके गरीब घरमें निर्धनता, प्रतिकूलता और संघर्षके वातावरणमें भी महाकृपालु प्रभुने आनन्द प्रदान करनेवाली अनेक वस्तुएँ प्रदान की हैं। अन्तर केवल यह है कि आपके स्थूल नेत्र उनके सौन्दर्य और उपयोगिताका अवलोकन नहीं करते।

आपको कौन-कौन वस्तुएँ प्राप्त है? क्या आपके पास उत्तम स्वास्थ्य है? यदि अच्छा स्वास्थ्य है तो आपको संसारकी एक महान् विभूति प्राप्त है, जिसके सामने संसार का समस्त स्वर्ण, बेशकीमती मूँगे, मोती, हीरे, जवाहिरात, दौलत इत्यादि फीके हैं। वास्तवमें संसारका अस्तित्व ही आपके स्वास्थ पर है।

आपको जो स्वाख्यरूपी सम्पदा प्राप्त है, उसका आदर कीजिये। अपनी पाँचों इन्द्रियों-स्वाद, वाण, श्रवण, स्पर्श, दर्शन-इत्यादि के अनेक आनन्दोंका निर्दोष सुख लूटिये। विश्वमें ऐसे सैकड़ों सुख एवं आनन्द है, जिनका आधार उत्तम स्वास्थ्य है। जब यह आपको प्राप्त है, तब इसके द्वारा रसपान करना, जीवनमें आनन्द उठाना आपकी बुद्धिपर निर्भर है। बुद्धिके सदुपयोगसे स्वास्थके आधारपर रहनेवाले अनेक सुखोंको प्राप्त कर जीवनको सुख-शान्तिमय बनाया जा सकता है। लम्बी सैरको जाइये, फूलोंसे परिपूर्ण उद्यानमें टहलिये, नदियोंमें स्वच्छन्दतासे तैरिये, खेलिये-कूदिये, आप बिना किसी रुपये-पैसे के आनन्द प्राप्त कर सकते है। स्वास्थ्य, बल, शक्ति, स्वाभाविक सौन्दर्य जो आपको प्राप्त है, उसके आनन्द आपकी पहुँच के भीतर है। उन्हें प्राप्त कीजिये।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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